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एम एस पी -MSP

पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

भारत के साथ दुनिया भर में गेहूं खाना बनाने का एक मुख्य स्रोत है। अगर वैश्विक हालातों पर गौर करें, तो इन दिनों दुनिया भर में गेहूं की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण गेहूं के दामों में तेजी से इजाफा देखने को मिला है। दरअसल, गेहूं का उत्पादन करने वाले दो सबसे बड़े देश युद्ध की मार झेल रहे हैं, जिसके कारण दुनिया भर में गेहूं का निर्यात प्रभावित हुआ है। अगर मात्रा की बात की जाए तो दुनिया भर में निर्यात होने वाले गेहूं का एक तिहाई रूस और यूक्रेन मिलकर निर्यात करते हैं। पिछले दिनों दुनिया में गेहूं का निर्यात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसके कारण बहुत सारे देश भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।



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दुनिया में घटती हुई गेहूं की आपूर्ति के कारण बहुत सारे देश गेहूं खरीदने के लिए भारत की तरफ देख रहे थे। लेकिन उन्हें इस मोर्चे पर निराशा हाथ लगी है। क्योंकि भारत में इस बार ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण गेहूं की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई थी। अन्य सालों की अपेक्षा इस साल देश में गेहूं का उत्पादन लगभग 40 प्रतिशत कम हुआ था। जिसके बाद भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। कृषि विभाग के अधिकारियों ने इस साल रबी के सीजन में एक बार फिर से गेहूं के बम्पर उत्पादन की संभावना जताई है।



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आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के डायरेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा है, कि इस साल देश में पिछले साल के मुकाबले 50 लाख टन ज्यादा गेहूं के उत्पादन की संभावना है। क्योंकि इस साल गेहूं के रकबे में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही इस साल किसानों ने गेहूं के ऐसे बीजों का इस्तेमाल किया है, जो ज्यादा गर्मी में भी भारी उत्पादन दे सकते हैं। आईसीएआरआईआईडब्लूबीआर गेहूं की फसल के उत्पादन एवं रिसर्च के लिए शीर्ष संस्था है। अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया है, कि तेज गर्मी से भारत में अब गेहूं की फसल प्रभावित होने लगी है, जिससे गेहूं के उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।

इस साल देश में इतना बढ़ सकता है गेहूं का उत्पादन

कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि, इस साल भारत में लगभग 11.2 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। जो पिछले साल हुए उत्पादन से लगभग 50 लाख टन ज्यादा है। इसके साथ ही अधिकारियों ने बताया कि इस साल किसानों ने गेहूं की डीबीडब्लू 187, डीबीडब्लू 303, डीबीडब्लू 222, डीबीडब्लू 327 और डीबीडब्लू 332 किस्मों की बुवाई की है। जो ज्यादा उपज देने में सक्षम है, साथ ही गेहूं की ये किस्में अधिक तापमान को सहन करने में सक्षम हैं।



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इसके साथ ही अगर गेहूं के रकबे की बात करें, तो इस साल गेहूं की बुवाई 211.62 लाख हेक्टेयर में हुई है। जबकि पिछले साल गेहूं 200.85 लाख हेक्टेयर में बोया गया था। इस तरह से पिछली साल की अपेक्षा गेहूं के रकबे में 5.36 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि इस साल की रबी की फसल के दौरान राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में गेहूं के रकबे में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी हुई है।

एमएसपी से ज्यादा मिल रहे हैं गेहूं के दाम

अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए इस साल गेहूं के दामों में भारी तेजी देखने को मिल रही है। बाजार में गेहूं एमएसपी से 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा दामों पर बिक रहा है। अगर वर्तमान बाजार भाव की बात करें, तो बाजार में गेहूं 30 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। इसके उलट भारत सरकार द्वारा घोषित गेहूं का समर्थन मूल्य 20.15 रुपये प्रति किलो है। बाजार में उच्च भाव के कारण इस साल सरकार अपने लक्ष्य के अनुसार गेहूं की खरीदी नहीं कर पाई है। किसानों ने अपने गेहूं को समर्थन मूल्य पर सरकार को बेचने की अपेक्षा खुले बाजार में बेचना ज्यादा उचित समझा है। अगर इस साल एक बार फिर से गेहूं की बम्पर पैदावार होती है, तो देश में गेहूं की सप्लाई पटरी पर आ सकती है। साथ ही गेहूं के दामों में भी कमी देखने को मिल सकती है।

दिवाली पर केंद्र सरकार ने रबी की फसलों की एम एस पी दर बढ़ाकर किसानों को दिया तोहफा

दिवाली पर केंद्र सरकार ने रबी की फसलों की एम एस पी दर बढ़ाकर किसानों को दिया तोहफा

दिवाली पर केंद्र सरकार ने दाल एवं गेंहू सहित और भी छह फसलों की एम एस पी (MSP) में वृध्दि कर दी है। गेंहू सहित समस्त रबी फसलों की एम एस पी में ३ से ९% बढ़ोतरी की पहल कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने की थी। हाल ही में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की १२ वीं किस्त भी किसानों के खातों में ट्रांसफर करदी गयी है, इसके साथ ही किसानों की बेहतरी के लिए केंद्र सरकार ने एम एस पी की दर भी बढ़ा दी है। यह किसानों के लिए दोहरा तोहफा दिया गया है, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की उर्वरकों से सम्बंधित समस्या के निराकरण के लिए ६०० समृद्ध उर्वरक केंद्र स्थापित भी किये हैं, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री जी ने एग्री स्टार्ट अप कॉनक्लेव और किसान सम्मेलन (Agri Startup Conclave & Kisan Sammelan) के दौरान की थी। बीते दिनों प्रचंड बारिश के चलते किसानों की फसल चौपट हो चुकी है, जिसके लिए सरकार किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने का आश्वासन भी दे चुकी है। केंद्र सरकार ने किसानों के हित में कई सारी योजनायें चला रखी हैं, जिनसे किसान काफी हद तक लाभ उठा सकते हैं।

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एम एस पी किस प्रकार निर्धारित होती है ?

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) केंद्र सरकार के निर्देशानुसार किसानों द्वारा फसल पर व्यय एवं फसल के अंतिम छोर तक पहुँचने तक समस्त खर्च संज्ञान में रखने के उपरांत ही न्यूनतम समर्थन मूल्य निश्चित किया जाता है। इसे कृषि लागत एवं मूल्य आयोग(Commission for Agricultural Costs and Prices (CACP)) द्वारा निर्धारित किया जाता है, लेकिन गन्ने का समर्थन मूल्य सिर्फ गन्ना आयोग द्वारा निर्धारित किया जाता है। गन्ने को छोड़कर अन्य रबी एवं खरीफ की फसलों की एम एस पी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा निर्धारित की जाती हैं। गेंहू सहित अन्य छह रबी की फसलों में ३ से ९ प्रतिशत तक न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की गयी है।

किस फसल पर कितनी एम एस पी बढ़ी है ?

केंद्र सरकार द्वारा रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के फैसले के बाद गेंहू के मूल्य में ११० रुपये, जौ में १००, चना में १०५, मसूर में ५०० एवं सरसों में ४०० रूपये की बढ़ोत्तरी हुयी है। पूर्व में केंद्र सरकार द्वारा खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की गयी है, धान की बिक्री का समय आ गया है। किसानों को अपनी लागत के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल पायेगा एवं अन्य भी खरीफ की फसल जैसे दाल, तिल इत्यादि का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया जा चुका है। किसान दिवाली से पूर्व न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि होने से बेहद खुश हैं।

किसानों के लिए किस तरह सहायक साबित होती है एम एस पी में वृद्धि ?

आये दिन मंहगाई में वृद्धि होने से किसानों की लागत भी बढ़ जाती है क्योंकि उनको फसल तैयार करने के लिए बीज, सिंचाई, कीटनाशक एवं उर्वरकों के साथ साथ जुताई बुवाई में भी काफी व्यय करना पड़ता है, जिसके चलते किसान को उसके द्वारा फसल में लगायी गयी लागत एवं मुनाफा लेने के लिए फसल के मूल्य में वृद्धि होना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए केंद्र सरकार की सहमती से कृषि लागत एवं मूल्य आयोग फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है, जिससे किसानों को उनकी लागत के साथ साथ बेहतर मुनाफा भी प्राप्त हो सके।

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलों की ताबड़तोड़ खरीददारी कर रही है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने जानकारी दी है, कि अब तक केंद्र सरकार 24,000 टन मूंग खरीद चुकी है। इसके साथ ही सरकार आगामी दिनों में 4,00,000 टन खरीफ मूंग की खरीददारी करने जा रही है। इसके लिए सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार यह 4,00,000 टन खरीफ मूंग उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 10 राज्यों के किसानों से खरीदेगी।

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अधिकारियों ने बताया है, कि मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) को पूरी तरह से केंद्र सरकार का कृषि मंत्रालय नियंत्रित करता है। कृषि मंत्रालय जब देखता है, कि बाजार में फसलों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गिर गए हैं, तब कृषि मंत्रालय मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलें खरीदना प्रारंभ कर देता है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचने पर मजबूर न होना पड़े। यह खरीददारी कृषि मंत्रालय के आधीन आने वाला भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) करता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल अभी तक 24,000 टन मूंग की खरीदी हो चुकी है, जिसमें से 19,000 टन अकेले कर्नाटक के किसानों से खरीदी गई है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है, जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल पाए। इसके लिए खरीदी प्रक्रिया की हर राज्य में सघनता से जांच की जा रही है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को बेचने पर किसी भी प्रकार की परेशानी न होने पाए।

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बकौल कृषि मंत्रालय, मूंग के अलावा 2022-23 खरीफ सत्र में उगाई गई 2,94,000 टन उड़द और 14 लाख टन मूंगफली की भी खरीददारी की जाएगी। कृषि मंत्रालय ने इसकी स्वीकृति भी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) को भेज दी है। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने कृषि मंत्रालय को अपने जवाब में बताया है, कि इस साल अभी तक उड़द और मूंगफली की खरीद नहीं हो सकी है। क्योंकि अभी भी बाजार में इन दोनों फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत ज्यादा ऊपर चल रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने अभी तक जिन फसलों की खरीद की है। उन्हें कृषि मंत्रालय ने राज्य सरकारों को देना शुरू कर दिया है, ताकि इन फसलों को पीडीएस के माध्यम से खपाया जा सके। इसी तरह अगर खरीफ की फसलों के अंतर्गत आने वाले धान की फसल की बात करें, तो अभी तक भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) के माध्यम से सरकार ने 306.06 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की है। जबकि सरकार का लक्ष्य 775.72 लाख टन धान खरीदने का है।

केंद्र सरकार ने 'खोपरा' नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दी मंजूरी

केंद्र सरकार ने 'खोपरा' नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दी मंजूरी

भारत सरकार देश के किसानों की आय को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में राज्य तथा केंद्र सरकारें आए दिन कृषि नीति और कानून में किसान हितैषी बदलाव करती रहती हैं। ताकि किसानों को फायदा हो और वह अपने पैरों पर खड़ी रह सकें। हाल ही में भारत सरकार की कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मिलिंग खोपरा (नारियल) के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 270 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इसी के साथ सरकार ने घोषणा की है, कि अब बॉल खोपरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी 750 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ोत्तरी की गई है। सरकार की इस घोषणा से नारियल उत्पादक किसानों को राहत मिलने की उम्मीद है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी किए जानें से किसान भाई नारियल की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे। जिससे नारियल की खेती का रकबा बढ़ाने में मदद मिलेगी। अगर इस खेती से किसानों को अच्छी आमदनी होने लगती है, तो नारियल का प्रसंस्करण बिजनेस को बढ़ाने में भी किसान आगे आ सकते हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद अब इस कीमत पर बिकेगा नारियल

सरकार ने कहा है, कि नारियल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद अब मिलिंग खोपरा 10,860 रुपये क्विंटल के भाव पर बिकेगा। नारियल की इस किस्म पर 270 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। जब कि बॉल खोपरा नारियल 11,750 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिकेगा। इस नारियल पर 750 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य के बढ़ने से नारियल के किसानों का मुनाफा बढ़ने की पूरी संभावना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने कहा है, कि नारियल की कीमतों का निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर किया गया है। साथ ही, कीमतों के निर्धारण में प्रमुख नारियल उत्पादक राज्यों के सुझावों पर भी गौर किया गया है। नारियल की खेती गेहूं, चावल और सब्जियों से ज्यादा मुनाफे वाली खेती होती है। यदि किसान वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए नारियल की खेती करें, तो इस खेती से किसान बंपर कमाई कर सकते हैं। नारियल की खेती में एक बार रोपाई करने के बाद आगामी 80 सालों तक इसकी फसल ली जा सकती है। साथ ही, नारियल के बाग में खाली पड़ी जमीन में काली मिर्च, इलायची या दूसरी मसाला फसलों की खेती करके अतिरिक्त आय भी अर्जित की जा सकती है।


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इन दिनों भारत के साथ ही विदेशी बाजारों में साबुत नारियल तथा नारियल के तेल की जबरदस्त मांग है। साथ ही, इसकी मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे भविष्य में किसानों के पास इस खेती से अच्छी कमाई करने का मौका होगा।
यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

साल 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार मिलेट्स के क्षेत्रफल को बढ़ाएगी। प्रदेश सरकार इस रकबे को 11 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 25 लाख तक करेगी। राज्य सरकार ने अपने स्तर से तैयारियों का शुभारंभ क्र दिया है। आने वाले साल 2023 को दुनिया मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाएगी। मिलेट्स वर्ष मनाए जाने की पहल एवं इसकी शुरुआत में भारत सरकार की अहम भूमिका रही है। भारत में मिलेट्स का उत्पादन अन्य सभी देशों से अधिक होता है। देश का मोटा अनाज पूरी दुनिया में अपना एक विशेष स्थान रखता है। इसी वजह से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी मोटे अनाज को उत्सव के तौर पर मनाकर देश की प्रसिद्ध को दुनियाभर में फैलाना चाहते हैं। कुछ ही दिन पहले मोदी जी ने दिल्ली में आयोजित हुए एक कार्यक्रम में मोटे अनाज का बना हुआ खाना खाया था। भारत के विभिन्न राज्यों में मोटा अनाज का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। मिलेट्स इयर आने की वजह से उत्तर प्रदेश राज्य में मोटे अनाज के उत्पादन का क्षेत्रफल बाद गया है।

उत्तर प्रदेश राज्य कितने हैक्टेयर में करेगा मोटे अनाज का उत्पादन

खबरों के मुताबिक, प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने मिलेट्स इयर के संबंध में राज्य के कृषि विभाग के अधिकारीयों को बुलाकर इस विषय पर बैठक की है। इस बैठक में जिस मुख्य विषय पर चर्चा की गयी वह यह था, कि वर्तमान में 11 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज का उत्पादन हो रहा है। इसको साल 2023 में 25 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाए। हालाँकि लक्ष्य थोड़ा ज्यादा बड़ा है, विभाग के अधिकारी पहले से ही इस बात के लिए तैयारी में जुट जाएँ।


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उत्तर प्रदेश सरकार ने कितना लक्ष्य तय किया है

राज्य सरकार द्वारा अधीनस्थों को आगामी वर्ष में मोटे अनाज का क्षेत्रफल दोगुने से ज्यादा वृद्धि का आदेश दिया है। बतादें, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे अनाज से संबंधित पहल को बेहद ही गहनता पूर्वक लिया गया है। साथ ही, इस विषय के लिए उत्तर प्रदेश सरकार भी काफी गंभीरता दिखा रही है। उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्रफल का इलाका 86 फीसद हैं। बतादें, कि इस रकबे में दलहन, तिलहन, धान, गेहूं का उत्पादन किया जाता जाती है।

कहाँ से खरीदेगी सरकार बीज

कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देेश दिया गया है, कि कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के अधिकारियों से संपर्क साधें। राज्य में बुआई हेतु मोटे अनाज के बीज की बेहतरीन व्यवस्था की जाए। सबसे पहली बार 18 जनपदों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बाजरा खरीदा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में कितना किया जायेगा अनाज का उत्पादन

उत्तर प्रदेश के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में मोटे अनाज की मुख्य फसलें जिनका अच्छा उत्पादन भी होता है, वह ज्वार एवं बाजरा हैं। महाराष्ट्र राजस्थान, उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बाजरा का उत्पादन किया जाता है। क्षेत्रफलानुसार बात की जाए तो उत्तर प्रदेश 9 .04 लाख हेक्टेयर, महाराष्ट्र में 6.88, राजस्थान में 43.48 लाख हेक्टेयर में बाजरे का उत्पादन किया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य की पैदावार प्रति हेक्टेयर 2156 किलो ग्राम है। राजस्थान का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 1049 किलोग्राम एवं महाराष्ट्र की पैदावार की बात करें तो 955 किलो ग्राम है।

ज्वार के उत्पादन का क्षेत्रफल कितना बढ़ा है

राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में ज्वार का अच्छा खासा उत्पादन होता है। क्षेत्रफल के तौर पर कर्नाटक प्रति हेक्टेयर प्रति क्विंटल पैदावार के मामले में अव्वल स्थान है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ज्वार की पैदावार बढ़ाने के लिए काफी जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 में 1.71 लाख हेक्टेयर उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन वर्ष 2023 में इसको 1.71 लाख हैक्टेयर से बढ़ाकर 2.24 लाख हेक्टेयर तक पहुँचा दिया है। इसी प्रकार सावां व कोदो का रकबा भी पहले से दोगुना कर दिया गया है।